Wednesday, January 15, 2025
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पूर्व मंत्री आरिफ अकील नही रहे, आज सुबह ली अंतिम सांस, आखिर उन्हें क्यों कहते थे शेर – ए – भोपाल ?

भोपाल। मध्यप्रदेश के जाने माने राजनेता, पूर्व मंत्री Politician and Ex Minister  आरिफ अकील Arif Akil  नही रहे। आज सुबह एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। आरिफ को शेरे भोपाल भी कहा जाता था क्योंकि नब्बे के दशक से भोपाल उत्तर सीट पर तमाम कोशिशों के बावजूद कोई उनका सियासी दबदबा कम नही कर सकी । 

एनएसयूआई से सीखी सियासत

सहज स्वभाव और मिलनसार प्रकृति के आरिफ अकील का जन्म  14 जनवरी 1952 को हुआ। वे सामान्य घराने से थे लेकिन छात्र जीवन से ही समाजसेवा और राजनीति में सक्रिय रहे । उन्होंने सियासत में एनएसयूआई के जरिये कदम रखा । 1977 में वे भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) के उपाध्यक्ष बने। फिर वे युवक कांग्रेस और कांग्रेस में भी सक्रिय रहे।

मंत्री को हराकर निर्दलीय बन गए विधायक

उन्होंने पूरे प्रदेश का ध्यान तब खींचा जब 1990 में उन्होंने भोपाल उत्तर Bhopal North क्षेत्र से निर्दलीय Independent चुनाव लड़ा और भाजपा और कांग्रेस दोनो के प्रत्याशियों को करारी शिकस्त देते हुए शानदार जीत हासिल की । उन्होंने तत्कालीन पीएचई मिनिस्टर हसनात सिद्दीकी को हराया। हालांकि 1993 में जनता दल प्रत्याशी के रूप में लड़े तो हार गए ।

भोपाल उत्तर बन गया अभेद्य गढ़

लेकिन फिर वे अपनी मूल पार्टी काँग्रेस में लौटे और 1998 में कांग्रेस के टिकिट से लडे और जीते । इसके बाद भोपाल दक्षिण उनका गढ़ बन गया । भाजपा की तमाम घेराबंदीयो के बाद भी वह अकील का यह अभेद्य गढ़ को नही हिला पाई । 2023 में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के कारण उन्होंने अपने बेटे आतिफ अकील को मैदान में उतारा। आरिफ  ने व्हील चेयर और गाड़ी में बैठकर वोट मांगे जनता ने उन्हें व्यापक समर्थन देकर उनके बेटे को जिताया। 

हार्ट की दिक्कतों से जूझ रहे थे

आरिफ अकील को लम्बे समय से हार्ट सम्बन्धी दिक्कतें थी । पिछले साल जाँच में ब्लॉकेज निकलने के चलते उनके हार्ट की सर्जरी करके ब्लॉकेज खोले गए थे। उनके बेटे के अनुसार रविवार की शाम को दिल मे दर्द की शिकायत के बाद उन्हें सेज अपोलो हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया था जहां डॉक्टर्स ने उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा था लेकिन सोमवार को सुबह उनका निधन हो गया। 

जो मेरे पास आ गया वो मेरा हो गया

आरिफ अकील बेहद मिलनसार आदमी थे । वे अपने क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि वे सभी का काम करते थे चाहे वे किसी भी दल , जाति या धर्म का क्यों न हो। वे कहते थे कि जो उनके पास आ गया वह मेरा हो गया। 

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