MP NEWS : मऊगंज| सनातन धर्म की रक्षा और न्याय की माँग को लेकर 23 दिनों से अनशन पर बैठे समाजसेवी अखिलेश पाण्डेय और उनके समर्थकों की अथक तपस्या ने आखिरकार प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया।
खजुरहन मंदिर को कथित रूप से वक्फ संपत्ति घोषित करने और अतिक्रमण के विरोध में जब पूरी व्यवस्था मौन थी, तब समाजसेवी अखिलेश पाण्डेय एक सच्चे सनातनी योद्धा की भाँति मैदान में उतरे। प्रशासन की लापरवाही और राजनीतिक उदासीनता के बावजूद, उन्होंने न केवल हिम्मत के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी, बल्कि मऊगंज कलेक्टर कार्यालय के समक्ष 23 दिनों तक अनवरत अनशन कर सत्य और न्याय की लौ जलाए रखी।
नवागत कलेक्टर के आते ही बदला प्रशासन का रुख
पहले प्रशासन अनशनकारियों को भ्रमित करने और मामले को दबाने के प्रयास कर रहा था, लेकिन जब यह मामला पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया और भोपाल तक इसकी गूँज पहुँची, तब शासन-प्रशासन हरकत में आया। नवागत कलेक्टर के आने के बाद जिला प्रशासन ने मंदिर पर हुए अतिक्रमण की जाँच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करने का लिखित आश्वासन दिया।
सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखिलेश पाण्डेय का दृढ़ संकल्प
अखिलेश पाण्डेय ने स्पष्ट कर दिया था कि यह केवल एक मंदिर की भूमि का मामला नहीं, बल्कि पूरे सनातन समाज की आस्था और सम्मान की लड़ाई है। अनशन के दौरान प्रशासन ने कई बार समझौते के प्रयास किए, यहाँ तक कि RI और पटवारी को निलंबित करने की औपचारिक कार्रवाई का झुनझुना भी दिखाया, लेकिन अखिलेश पाण्डेय अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे।
प्रशाशन की निष्क्रियता के कारण जनता में आक्रोश
प्रशासन की लापरवाही ने जनता के आक्रोश को और भड़का दिया। समाजसेवी अखिलेश पाण्डेय के प्रयासों से यह मामला विधानसभा तक पहुँचा, जिससे पूरे प्रशासन में हड़कंप मच गया।
अब क्या होगा आगे?
एसडीएम के लिखित आश्वासन के अनुसार, संयुक्त कलेक्टर राजेश मेहता के नेतृत्व में 7 सदस्यीय जाँच समिति 1 महीने के भीतर मंदिर के दस्तावेजों की जाँच कर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही करेगी।
अखिलेश पाण्डेय और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि 1 महीने में निष्पक्ष जाँच नहीं हुई और मंदिर को मुक्त नहीं कराया गया, तो यह आंदोलन और भी व्यापक रूप लेगा।
सनातन धर्म की जीत का पहला कदम!
इस पूरी लड़ाई में अखिलेश पाण्डेय एक नायक के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने शांतिपूर्ण लेकिन अडिग संघर्ष के माध्यम से प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। अब सबकी निगाहें प्रशासन पर हैं कि क्या वादा किया गया न्याय वास्तव में मिलेगा, या फिर यह आंदोलन एक नए ऐतिहासिक संघर्ष का रूप लेगा।
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं!