Bhagat Singh Jayanti : आज 28 सितंबर 2024 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा भगत सिंह की जयंती मनाई जा रही है. शहीद भगत सिंह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपने जीवन की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया. उनकी जयंती के अवसर पर देशभर में विभिन्न स्थानों पर उन्हें और उनके बलिदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. यह दिन विशेष महत्व रखता है।
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है” आजादी के 77 साल बाद भी भगत सिंह का यह नारा रग-रग में देशभक्ति और जुनून भर देता है। भारत के महान इतिहास में कई वीर सपूतों का नाम दर्ज है, जिनमें से एक भगत सिंह आज भी अपने जज्बे और देश के लिए अपने प्यार के लिए याद किए जाते हैं। 28 सितंबर, 1907 में पश्चिमी पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह से देशभक्त की एक ऐसी मिसाल कायम की, जिसका उदाहरण आज भी लोग देते हैं। देश की आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान देने वाले भगत सिंह ने 24 साल की छोटी से उम्र में शहादत को गले लगा लिया था।
अपनी बहादुरी और देश की आजादी के लिए अपनी दीवानगी से उन्होंने अंग्रेजी सरकार की जड़े हिला दी थी। अपना जीवन भारत पर न्यौछावर करने वाले भगत सिंह को 23, 1931 में फांसी दी गई थी, लेकिन उनकी शहादत बेकार नहीं गई और उनकी लगाई आजादी की चिंगारी ने आग बनकर पूरे ब्रिटिश शासन को जला डाला। उनके जोश से भरपूर विचार आज भी लोगों को जिंदादिली से भर देते हैं। ऐसे में भगत सिंह की जयंती के मौके पर पढ़ते उनके कुछ ऐसे ही जोश और ऊर्जा से भरने वाले कुछ विचार
भगत सिंह के प्रेरक विचार-
- आपका जीवन तभी सफल हो सकता है जब आपका निश्चित लक्ष्य हो और आप उनके लिए पूरी तरह से समर्पित हो।
- वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे।
- अगर बेहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए।
- मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
- मेरे जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है और वो है देश की आज़ादी. इसके अलावा कोई और लक्ष्य मुझे लुभा नहीं सकता।
- जिंदा रहने की हसरत मेरी भी है, पर मैं कैद रहकर अपना जीवन नहीं बिताना चाहता।
- इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंकलाब लिखा जाता है।
- मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी।
- जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दुसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
- राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।